Friday, 21 June 2013

माँ परम ज्योति चालीसा

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मंत्र .......!! ॐ ज्योर्तिज्योर्ति परम ज्योति अज्ञान्तिमिरान्ध्या , भुक्ति मुक्ति प्रदादेवी भक्तानामातिहा !!


दोहा:- श्री गणेश का ध्यान कर,शिव चरनन धर माथ !
         परम ज्योति वंदन करहुं ,श्री सिद्धेश्वर के साथ !!


जय जय दिव्य ज्योति जगमाता ,जयति जयति परम ज्योति विख्याता 
तुम ही सर्व जगत की माता ,तुमसे बड़ा न कोई नाता -1

परम ज्योति रूप चतुर्भुजधारी ,हस्त गदा धरनी धर धारी 
गोद में लै गणपति को खिलावे ,सुर नर मुनि का मन हरशावे 
विमल वदन है मात तुम्हारा ,परमामृत है रूप तुम्हारा 
तुम ही दुर्गा सिंह वाहिनी ,वरचो ज्योति तुम पतित पावनी -2

तुम ही ब्रह्म अब्रह्म भी तुम हो,तुम ही वेद अवेद भी तुम हो 
शाश्वत नित्य अजन्मा तुम हो,भुक्ति-मुक्ति प्रदायिनी तुम हो 
प्रानाक्षर में तुम ही विराजत ,अर्ध मातरा तुम ही साजत 
तुम ही संध्या तुम ही सावित्री ,तुम ही विश्व ब्रह्मांड को धरती -3

आदि-अनादि अनंत माँ तुम हो ,सृष्टि की करता धरता तुम हो 
सृष्टि का पालन तुम ही करती ,प्रलय काल सब नाश भी करती 
शक्ति,पुष्टि,तुष्टि भी तुम हो ,लज्जा,शान्ति,क्षमा भी तुम हो 
रूद्र रूप संचार माँ करती ,तुम ही सोम को धारण करती -4

 तुम धन धान्य को देने वाली ,ज्ञान की ज्योति जगाने वाली 
परम ज्योति का धाम निराला ,पहरा देत काशी कोतवाला 
चौंसठ योगनी गान करत हैं , भैरव बाब संग नचत हैं 
शिव के संग में माई विराजत ,पुत्र गणेश को गोद खिलावत -5

हनुमत करत माँ की अगवानी ,हाथ में लेकर लाल निशानी 
जो भी जन इस छविं को ध्यावत ,अष्ट सिद्धि नव निधि फल पावत 
जय दिव्य ज्योति माँ दुःख नाशिनी ,जय ज्योति माँ ज्ञान दायिनी 
जय अग्नि ज्योति माँ मंगल कारिणी ,जय वरचो ज्योति माँ आनंद दायिनी -6

जयति जयति माँ शक्ति स्वरुपनी ,जयति जयति माँ ब्रह्म रूपनी 
तुम ही रमा शारदा काली ,सदा करत संतन रखवाली 
जय सर्व शत्रु विनाशिनी जय जय ,जय दैत्य दानव मर्दिनी जय जय 
जय कैटभासुर मर्दिनी जय जय ,जय महिषासुर मर्दिनी जय -7 

जय लंकेश्वर विनाशिनी जय जय ,जय चंड मुंड विनाशिनी जय जय 
दैत्य सूदिनी मथनी जय जय ,जय धूम्राक्ष मर्दिनी जय जय 
जय निशुम्भ अंन्त्री माँ जय जय ,जय दुर्गासुर निहन्त्री जय जय 
त्रयलोक परिपालिनी जय जय ,दिव्य स्थान निवासिनी जय जय -8

कारण परम अकारण तुम हो ,ज्योति रूप विदारण तुम हो 
तुम जग की रखवाली करती ,रोगों को माँ छन में हरती 
माँ ज्योति का रूप निराला ,परम धाम पहुँचाने वाला 
साधक सिद्धि करत रखवारी ,परम ज्योति की महिमा भारी -9

मैया तेरा दिव्य स्वरुपा ,ध्यान धरत छूटे भव कूपा 
करती कृपा मिटे दुःख भूपा ,दरश करत जो ज्योति रूपा 
श्यामल छविं अति रूप अनूपा ,कृपा अगारिणी नाम स्वरुपा 
जो नित यह चालीसा गावै ,निश्चय मन वांछित फल पावै -10
दोहा :-जग कल्याण बढ़ाये कर ,सिद्ध करो सब काज !
           "श्रीधर" विनती करत है ,जगदम्बा से आज !! 

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