जागरण पंथ की स्थापना माँ भगवती नें भक्त शिरोमणि ध्यानु जी को लाल चुनरी (पगड़ी) जिसको "बाना" कहते हैं, बाँध कर की थी। और ध्यानु जी को महन्त की उपाधी से सुशोभित किया था। इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए सदियों से केवल बानाधारी महन्त अपनी मण्डली के साथ माँ भगवती का पावन गुणगान करते आ रहे हैं। इसलिए जागरण-चौकी के डल-अरदास लेने का अधिकार भी केवल बानाधारी महन्तों को ही है। इवेन्ट,शादी-ब्याह में नाच-गाना करने वाले तथा मेहंदी की रात अथवा शराब-शबाब की महफिलों में गा कर लोगों का मनोरंजन करने वालों से जागरण-चौकी या कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करवाने से बचें तथा पाप के भागीदार न बनकर पुण्य के भागीदार बनें। जागरण-चौकी मनोरंजन नहीं है, और न ही गाने और बजाने को जागरण-चौकी कहते हैं। बल्कि यह तो एक यज्ञ है जो बड़े ही भाग्यशाली भक्तों के घर पर माँ भगवती की असीम अनुकम्पा से होता है। अतः जागरण-पार्टी का चयन करते समय अपनी समझ एवं विवेक का प्रयोग अवश्य करें।